तपस्या कोई मंत्र जाप के रटने से नहीं होती है और न ही किसी गुरु के द्वारा दिये मंत्र के रटने से होती है । ऐसा करने से आप भगवान को तो प्राप्त कर सकते है पर तपस्या नहीं । तपस्या का मतलब है तप, और तप का मतलब है तपना, और तपने का मतलब है, किसी भी चीज़ भी को तपाकर उसमें से व्यर्थ की चीजों को बाहर निकाल कर उस चीज़ को शुद्ध करना होता है । जैसे सोने को तपाने से सोना चमकता है । लोहे, चाँदी, पीतल और ताँबा को तपाने से ये सभी धातु चमकने लग जाती है । उसी प्रकार जब हम अपने शरीर में मौजूद 5 इंद्रियों 5 कर्मेन्द्रओं 5 प्राणों और 5 उपप्राणों को तथा 7 चक्रों को तपाते हैं । तो शरीर तप से चमकने लगता है तथा इन 27 तत्वों में मोजूद विकारों को तप के द्वारा दूर करने को ही तपस्या कहते हैं । शरीर में मौजूद 5 इंद्रियों को एक-एक करके उनको तपाना तथा उनमें मौजूद विकारों को दूर करना तथा उनको शुद्ध करने को ही तपस्या कहते हैं ।
जैसे आपको अपनी वाक शक्ति को तपस्या से महान बनाना है तो आपको किसी अज्ञात जंगल में जाकर मौन धारण करना चाहिए । मौन धारण करने से आपकी वाक शक्ति प्रबल हो जाएगी तथा जब आप किसी को आशीर्वाद देंगे तो वो आशीर्वाद तथास्तु हो जाएगा । क्योंकि आपने अपने शब्दों के परमाणुओं को एकत्रित कर रखा था । तथा जब बोलोगे तो उन शब्दों का वेग इतना होगा कि आप जो शब्द बोलोगे वही ब्रहम वाक्य होगा ।
इसी प्रकार श्रोत इंद्रियों को तप के द्वारा महान बनाना चाहिए । दूर जंगल में जाकर जहाँ पर कोई इंसान का शब्द न सुनाई दे वहाँ पर श्रोत इंद्री में उत्पन्न विकारों को दूर करना चाहिए तथा उन पर शोध करना चाहिए । जब आपकी श्रोत इंद्री पर तपस्या पूर्ण हो जाएगी तो आप सेकड़ों मील दूर से किसी भी शब्द को सुन सकते हो । तथा जानवरों की आवाज को भी पहचान सकते हो ।
इसी प्रकार आप घ्राण इंद्री को भी महान बना सकते हो । अगर आपने अपनी सूंघने की शक्ति को तपस्या के द्वारा महान बना लिया तो आप हजारों मील दूर होने वाली वाली गतिविधिओं को जान सकते हो । जैसे एक हाथी अपनी घ्राण इंद्री के द्वारा सेकड़ों दूर पानी को एहसास कर लेता है ।
इसी प्रकार चक्षु इंद्रियों को आप महान बना सकते हो । जब आप तपस्या के द्वारा आंखो को अपने बस में करने की कोशिस करते हो । तथा आप चाहते हो जो हम चाहे वही आंखे देखे तो आपकी आंखे वही देखेंगी । तथा चक्षु इंद्रियों को तप से इतना महान बनाया जा सकता है कि इस संसार में भूत ,वर्तमान और भविष्य और त्रिलोक में होने वाली किसी भी घटना को आप सीधा देख सकते हैं । इसी को दिव्य द्रष्टि भी कहते हैं ।
जैसे एक गिद्ध की चक्षु इंद्री इतनी प्रवल होती है कि वो हजारों मील दूर तक देख सकती है ।
इसी प्रकार स्पंदन इंद्री को भी महान बनाना चाहिए । इसके महान बनाने से आप जान सकते हैं कि कोई भी जीव आपके प्रति बुरी भावना से आ रहा है तो उसकी नकारात्मक तरंगो को सपंदन इंद्री तुरंत ही पहचान लेती है । इसी प्रकार आप 5 कर्मेन्द्रिओं को भी महान बना सकते हो ।
आप स्वाद इंद्री को महान बनाना चाहते हो तो 2 महीने तक चीनी छोड़ो ,फिर 2 महीने तक नमक छोड़ो ,फिर मिर्च छोड़ो और धीरे धीरे स्वाद को अपने बस में लाओ । जब आपकी स्वाद इंद्री आपके बस में होगी तो आपका मनोबल और आत्मबल और तपोबल बढ़ेगा ।
इसी प्रकार आप वासना इंद्री को अपने बस में कर सकते हो । अगर आपकी पत्नी की सहवास की इच्छा है और आप अपनी काम इंद्री को तप से महान बना रहे हो तो तपस्या के दौरान ही आप अपनी पत्नी को सहवास से संतुष्ट कर सकते हैं तथा आपका वीर्य का विसर्जन भी नहीं हो सकता है । यहीं से वासना इंद्री को अपने बस में किया जा सकता है । ऐसा हमारे ऋषि मुनि किया करते थे । इसी प्रकार कोई स्त्री तपस्या में लीन है तो वो भी ऐसा ही कर सकती हैं । तथा यह आपकी ब्रह्मचर्य की पहचान है । इसी प्रकार 5 प्राणों , 5 उपप्राणों , तथा 7 चक्रों को कैसे तपस्या से महान बनाया जाये इसकी जानकारी आपको अगली पोस्ट में दूंगा ।
तपस्या क्या है ? तपस्या का वायो वैज्ञानिक आधार क्या है ? तपस्या कैसे करें भाग – 2
पाँच प्राणो का रहश्य क्या है ?
पिछले लेख में मैंने आपको बताया था कि आप तपस्या से अपनी इंद्रियों को तपा कर महान बना सकते हो । तथा शरीर को तपोबली बना सकते हो ।
आज आपको बताऊंगा कि 5 प्राणों और 5 उपप्राणों को कैसे तपस्या से महान बनाकर शरीर को कैसे निरोगी बनाए जाये ? तथा लंबी आयु प्राप्त की जा सके । हमारे शरीर के निचले हिस्से में जहां पर गुदा होती है या हम यह कह सकते हैं जहां पर हमारा मूलाधार चक्र होता है ।
वहाँ पर हमारा पहला प्राण “अपान प्राण” होता है । अपान प्राण का मुख्य कार्य शरीर के अंदर गुरुत्वाकर्षण बल का निर्माण करना होता है । गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही हमारा शरीर खड़ा होता है और बैठता है । प्रथ्वी के गुरुत्व और हमारे शरीर के अपान प्राण के गुरुत्व का आपस में हमेशा खिचाव रहता है । जब हम तपस्या बल से अपने अपान प्राण को महान बना लेते हैं तो हमारा शरीर प्रथ्वी के गुरुत्व बल से निकल कर हवा में तैरने लग जाता है । और हम अपान प्राण के तप के कारण पक्षियों की भांति हवा में उड़ सकते हैं । और जब हमारा अपान प्राण कमजोर हो जाता है तो प्रथ्वी हमारे शरीर को अपने गुरुत्व में मिला लेती है । तथा हम फिर उठ और बैठ नहीं सकते हैं । म्रत्यु के समय सबसे पहले हमारा अपान प्राण ही म्रत्यु को प्राप्त होता है।
दूसरा प्राण हमारे शरीर में “उदान प्राण” होता है । यह प्राण हमारे शरीर में जो भी हम खाते हैं उसको पचाता है तथा उसका रस बनाकर शरीर के तीसरे प्राण “समान” को दे देता है । अगर हम तप से उदान प्राण को महान बना लेते हैं तो हमे भोजन की आवश्यकता नहीं होटी है । तथा हम सालों साल अपना भोजन अंतिरक्ष से प्राप्त कर सकते हैं । जब हमारा म्रत्यु का समय आता है तो पहले अपान प्राण और फिर उदान प्राण काम करना छोड़ देता है । जिसके कारण हम खाना पीना छोड़ देते हैं । जब मनुष्य उठ बैठ नहीं पाता है तथा खाना पीना छोड़ देता है तो ज्ञानी पुरुष समझ जाता है कि इसके दो प्राण काम नहीं कर रहे हैं । इसका म्रत्यु का समय नजदीक आ गया है ।
हमारा तीसरा प्राण ”समान” प्राण होता है। इस प्राण का कार्य शरीर के अंदर 72,72,10,202 नस और नाड़ियों को समान रूप से रस की या खून की आपूर्ति करना होता है । अगर समान प्राण को हम तप से महान बना लेते हैं तो हमारे शरीर का पाचन तंत्र और आपूर्ति तंत्र मजबूत हो जाता है । तथा शरीर बिना किसी बीमारी और बाधा के जीवन जीता है । म्रत्यु के समय समान प्राण अपना काम छोड़ देता है । जो हम खाते हैं वो पच नहीं पता है और न ही उसकी आपूर्ति होती है ।
चौथा प्राण हमारे शरीर का “व्यान” प्राण होता है । जो कंठ चक्र पर मौजूद होता है । व्यान प्राण का मुख्य कार्य अंतिरक्ष से शब्दों को लाना और वाणी के द्वारा उनका प्रसारण करना होता है । अगर तप के बल से आप इस प्राण को महान बना लेते हो तो आपकी वाणी महान होगी । आप 24 घंटे लगातार किसी भी विषय पर बोल सकते हो । जब म्रत्यु के समय “व्यान” प्राण अपना काम बंद कर देता है तथा हम बोलना बंद कर देते हैं । जब शरीर के 4 प्राण काम करना बंद कर देते हैं तो समझना चाहिए कि अंतिम समय अब नजदीक आ गया है ।
अंत में पाँचवाँ प्राण नाभि में विराजमान रहता है उसका संबंध आत्मा से रहता है । उसको “प्राण” ही बोलते है । उसका संपर्क जब शरीर से टूट जाता है तो म्रत्यु निश्चित हो जाती है । इसलिए मेरे मित्रो तपस्या से इन पांचों प्राणों को महान बनाना चाहिए । इसके लिए आपको एक महान गुरु की आवश्यकता होती है । यह तपस्या महान तपस्वी गुरु के सानिध्य में ही करनी चाहिए । मित्रो अगले लेख मे 5 उपप्राणों के कार्य और तपस्या से कैसे महान बनाय जाये इसकी जानकारी दूंगा ।
तपस्या भाग – 3
तपस्या क्या है ? तपस्या का वायो वैज्ञानिक आधार क्या है ? क्या तपस्या से शरीर छोटा या बड़ा किया जा सकता है ?
पिछले दो लेखों में मैंने आपको तपस्या और 5 प्राणों के रहस्य की जानकारी दी थी । तपस्या के क्रम को आगे बढाते हुए अब आपको बताते हैं कि जब हम 5 इंद्री और 5 कर्मेन्द्रि और 5 प्राणों को तप के माध्यम से महान बना लेते हैं तो हमारे शरीर का बाहरी जगत तो तपस्या से चमकने लगता है । लेकिन आंतरिक जगत को तपाने की भी जरूरत होती है । शरीर के आंतरिक जगत में 5 उपप्राण और 7 चक्र को तपाने से शरीर का आंतरिक जगत भी चमकने लगेगा ।
शरीर के आंतरिक जगत में पहला उपप्राण “नाग” होता है । नाग उपप्राण शरीर में हमेशा क्रोध और वासना उत्पन्न करता रहता है । इसको तपाने से मनुष्य को वासना और क्रोध नहीं आता है तथा शरीर में अमृत बना रहता है ।
दूसरा उपप्राण “देवदत्त” होता है । इस प्राण का कार्य सुंदरता को धारण करना होता है । तथा उसको चित को प्रदान कर देता है । अगर देवदत्त उपप्राण को महान बना लिया जाये तो आपका चित और उसके संस्कार तथा सुंदरता बनी रहेगी ।
तीसरा उपप्राण “धनंजय’ होता है । अगर नाग उपप्राण किसी कारण बस अपना कार्य न करे तो उस कार्य को धनंजय उपप्राण कर देता है । अगर हम धनंजय उपप्राण को तप से महान बना लेते हैं तो वासना और क्रोध और अहंकार शरीर से समाप्त हो जाता है ।
चौथा उपप्राण “कूर्म उपप्राण “होता है । इस प्राण के तप के माध्यम से हम ब्रह्मा में रमण कर सकते हैं तथा स्थूल शरीर को छोटा या बड़ा कर सकते हैं ।
और पाँचवाँ उपप्राण “कृकल” होता है । यह उपप्राण हमारे शरीर में अग्नि को बढ़ा देता है या घटा देता है । जब हमारे आन्तरिक शरीर में ये 5 उपप्राण तपस्या से महान हो जाते हैं तो शरीर का आंतरिक जगत चमकने लगता है ।
कूर्म और कृकल उपप्राणों के मिलान से शरीर को छोटा या बड़ा किया जा सकता है । अगर इन दोनों उपप्राणों को उदान प्राण से मिलान कर दिया जाये तो शरीर को बहुत छोटा यानि शूक्ष्म या विशाल किया जा सकता है ।
हमारी प्रकृति की 5 प्रकार की गति होती है 1-आकुज्चन 2-प्रसारण 3-ऊर्ध्वा 4- ध्रवा 5 –गमन । जब हम तपस्या से अपने 5 इंद्री 5 कर्मेन्द्रि 5 प्राण 5 उपप्राण को महान बना लेते हैं तो शरीर का बाहरी जगत और आन्तरिक जगत तप से चमकने लगता है । और जब तपस्वी योगी इन 5 प्रकार की गति को कूर्म और कृकल उपप्राणों से मिलान कर लेता है तो वही तपस्वी अपने शरीर को बहुत छोटा कर सकता है या बड़ा कर सकता है और अन्तरिक्ष में उड़ान भर सकता है । इन प्राण विद्याओं को हनुमानजी जानते थे । इस तपस्या को करने के लिए सबसे पहले आपको अष्टांग योग का अभ्यास करना चाहिए ।
DHARAM GURU
डॉ एच एस रावत
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