ज्योतिषशास्त्र के शुभ योगऔर शुभमुहूर्त
वेदभारतीय वाङ्मय औरआध्यात्मशास्त्र के निधिभूतग्रंथहैऔरवेदपुरूष के चक्षु के रूपमेंअभिहितज्योतिषशास्त्र वहपराविद्याहैजिसकेप्रभापरकाल का कुछभीप्रभावनहींपड़ाहैऔर यह आजभीदैदीप्यमानग्रहोंऔर नक्षत्रोंकोअपनेअंकमेंसमेटेहुए स्वयंभीप्रदीप्तहै।
भारतीय ज्योतिषशास्त्र में 9 ग्रहों, 12 राशियाँ और 27 नक्षत्रों की मान्यताहैजिनकेआपसमेंमिलनेअर्थात् युतिअथवाव्याप्ति से शुभ-अशुभ योगों का निर्माणहोताहै।इसीप्रकार, तिथि, वार, नक्षत्र आदि के संयोग व तालमेल से भी शुभमुहूर्तों का निर्माणहोताहै।जैसाकि नाम से हीस्पष्टहैकि शुभ योग व मुहूर्त जीवन में शुभत्व की वृद्धि करतेहैऔरपरमकल्याणकारकहोतेहैजबकिअशुभ योग व मुहूर्तअमंगलकारकहोतेहै।
जन्मकुंडलीमेंग्रहोंके योग से हीजातक के मंगलमय औरअमंगलमय भविष्य का पूर्वानुमानकरभविष्य-कथनकियाजाताहै।जन्मकुंडलीमेंविधमान शुभ योगव्यक्तिकोसुयोग्य, सफल, महानऔरमहापुरूष बनादेतेहैं। यहाँ कुछ ऐसेहीप्रमुख औरप्रचलितज्योतिषीय योगोंऔरमुहूर्तां की संक्षिप्तचर्चा की जारहीहैंः-
(1) पंचमहापुरूष योगः-
भारतीय ज्योतिषशास्त्र मेंपंचमहापुरूष योग की बहुतहीमहत्ताहैं।मंगल, बुध, गुरू, शुक्रऔर शनिइनपाँचमहत्तवपूर्णग्रहों के द्वाराबनने के कारणइन्हेंपंचमहापुरूष योग के नाम से अभिहितकियाजाताहैं।इनकाविवरणनिम्नवत् हैंः-
(क) रूचकमहापुरूष योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंमंगललग्न से अथवाचन्द्रमा से केन्द्रमेंअर्थात् लग्नअथवाचन्द्रमा से 1,4,7 अथवा 10 वेंभावमेंउच्च का होकर या स्वराशिमेंस्थितहोंअर्थात् मकर, मेषअथवावृश्चिकराशिमेंस्थितहोंतो रूचक योग का निर्माणहोताहै। रूचक योग के शुभप्रभाव से व्यक्तिकोअद्भूत शारीरिक बल, स्वास्थ्य, पराक्रम, साहस, प्रबलमानसिक क्षमता, समयानुसारउचिततथातीव्रनिर्णय लेने की क्षमता, मान-सम्मानआदिप्राप्तहोताहै।
(ख) भद्रमहापुरूष योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंबुध लग्न से अथवाचन्द्रमा से केंद्रमेंस्थितहोंअर्थात् लग्नअथवाचन्द्रमा से 1, 4,7, अथवा10वें भावमेंउच्च का होकर या स्वराशिमेंअर्थात् मिथुनअथवाकन्याराशिमेंस्थितहोंतोभद्रमहापुरूष योग का निर्माणहोताहै।इसके शुभप्रभाव से जातकको युवापन, बुद्धि, वाण्ी-कौशल, संचार-कौशल, विश्लेषणकरने की क्षमता, परिश्रमकरने का स्वभाव, चातुर्य, व्यवसायिकसफलता, कलात्मकता, अभिनय-क्षमता, अभिकलन-क्षमता, स्मरणशक्ति, लेखन-कलातथाअन्य कईप्रकार के शुभफलप्राप्तहोतेहै।
(ग) हंस महापुरूष योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंगुरू लग्न से अथवाचन्द्रमा से केन्द्रमेंअर्थात् लग्नअथवाचन्द्रमा से 1,4,7, अथवा 10वें भावमेंउच्च का होकर या स्वराशिमेंअर्थात् कर्क, धनुअथवामीनराशिमेंस्थितहोंतो हंस महापुरूष योग का निर्माणहोताहै।इसके शुभप्रभाव से जातककोमान-सम्मान, सुख, समृद्धि, संपत्ति, संतान, सौभाग्य, लाभ,परिवारिक-सुख, आध्यात्मिकविकास, पाण्डित्य, प्राच्य विधाओंमेंरूचि एवंनिपुणता, आध्यात्मिक शक्तिऔरसिद्धि की प्राप्तिहोतीहै।
(घ) मालव्य महापुरूष योग :-
(2)
यदिजातक की जन्मकुंडलीमें शुक्रलग्न से अथवाचन्द्रमा से केन्द्रमेंस्थितहोंअर्थात् 1,4,7, अथवा 10वें भावमेंउच्च का होकर या स्वराशिमेंअर्थात् मीन, वृषभअथवातुलाराशिमेंस्थितहोंतोमालव्य महापुरूष योग का निर्माणहोताहै।इसके शुभप्रभाव से जातककोसौंदर्य, सुख-सुविधा, कलात्मकता, अभिनय कला, संगीतमें रूचि, तंत्रविधा में रूचि एवंनिपुणता, फैशन से संबंधितविषयोंमेंअभिरूचि, पाक-कलामेंनिपुणताआदिप्राप्तहोतीहैं।
(ड) शशमहापुरूष योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमें शनिलग्न से अथवाचन्द्रमा से केन्द्रस्थितहोंअर्थात् 1,4,7, अथवा 10वें भावमेंउच्च का होकर या स्वराशिमेंअर्थात् तुला, मकरअथवाकुंभराशिमेंस्थितहोतो शशमहापुरूष योग का निर्माणहोताहै। शशमहापुरूष योग के शुभप्रभाव से जातककोमान-सम्मान, स्वास्थ्य, लंबीआयु, अध्वयवसाय, सहनशीलता, तकनीकीशिक्षा, वैज्ञानिकअभिरूचि, छिपेहुए रहस्यों का भेदजानलेने की क्षमता, कूटनीतिक क्षमता, राजनैतिकसफलताआदिप्राप्तहोताहै।
(2.) गजकेसरी योग :-
ज्योतिषशास्त्र में इसे असाधारण योगमानाजाताहै।जबचंद्रमा से केंद्रमें 1,2,7, या 10वें भावमेंगुरू होतोगजकेसरी योग का निर्माणहोताहैं।साथही, चंद्रमाऔगुरू एक साथहोतबभी इस योग का निर्माणहोताहैं।जिसजातक की जन्मकुंडलीमें यह योगबनताहै, वहबहुतहीभाग्यशाली, प्रभावशालीसम्मानित, विद्वानऔरगुणवानहोताहै।उसेकभीभीकिसीचीज का अभावनहींहोताहैं।
(3.) बुधादित्य योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडली के मेंसूर्यऔरबुध की युतिहोतोबुधादित्य योग का निर्माणहोताहै।इसके शुभप्रभाव से व्यक्तिकोकुशाग्रबुद्धि, विश्लेषणात्मक क्षमता, वाक्-चातुर्य, संचार-कुशलता, नेतृत्वकरने की क्षमता, मान,सम्मान, व्यवसायिकसफलताआदिकईप्रकार के शुभलाभप्राप्तहोतेहै।
(4.) नृप योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंतीन या तीन से अधिकग्रहउच्च के होंतब इस योग का निर्माणहोताहै। यह योगअपने नाम के अनुसारहीफलप्रदानकरताहै।जिसजातक की जन्मकुंडलीमें इस योग का निर्माणहोताहै, उस जातक का जीवन नृपअर्थात् राजा की तरहव्यतीतहोताहै। इस योग की सहायता से जातकराजनीति के शिखरतकपहुँंचसकताहैं।
(5.) अमला योगः-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंचंद्रमा से दसवेंस्थानपरकोई शुभग्रहस्थितहोतो इस योग का निर्माणहोताहै।अमला योगजातक के जीवन में धनऔर यश प्रदानकरताहै।
(6.) लक्ष्मी योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंभाग्येशकेन्द्रमेंउच्च या मूलत्रिकोणराशिमेंहोअथवालग्नेशऔरनवमेश की युतिहोतो लक्ष्मीयोग का निर्माणहोताहै। इस शुभ योगमेंजन्मलेनेवालाजातकसुन्दर, धनवान, धार्मिक, गुणी औरबहुपुत्र वालाहोताहै।
(7.) अष्टलक्ष्मी योग :-
(3)
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंराहु छठे भावमेंऔरगुरू केंद्रमेंविराजमानहोतोअष्टलक्ष्मी नामक शुभ योग का निर्माणहोताहै।जन्मकुंडलीमें इस योग का निर्माणहोने से जातक के जीवन मेंकभीभी धन का अभावनहींरहताहै।
(8.) सरस्वती योग :-
यदिबुध, गुरू और शुक्रग्रह एक दूसरे के साथहों या केंद्रमेंबैठकरकिसीभीप्रकार से एक दूसरेसंबंध बनारहेहों, तबसरस्वतीजैसामहान योगजातक की कुंडलीमेंबनताहै। यह योगजिसजातक की कुंडलीमेंहोताहै, उस परमाँ सरस्वती की विशषकृपाहोतीहैं। इस योग के शुभप्रभाव के कारणजातकरचनात्मक क्षेत्रोंजैसेकिकला, संगीत, लेखन एवंशिक्षा के क्षेत्रमेंअपार ख्यातिप्राप्तकरताहै।
(9.) चन्द्र-मंगल योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंचन्द्रमाऔरमंगल की युतिहोतोचन्द्र-मंगल योग का निर्माणहोताहै। इस योग के फलस्वरूपजातककोचन्द्रमातथामंगल के बलाबलतथास्थिति के अनुसारविभिन्नप्रकार के शुभ-अशुभफलप्राप्तहोतेहै।
(10) पारिजात योग :-
जातक की जन्मकुंडलीमेंलग्नेशजिसराशिमेंहो, यदि उस राशि का स्वामीकुंडलीमेंउच्च का या फिरस्वराशि का होतो ऐसीदशामेंपारिजातयोग का निर्माणहोताहै। इस योगवालेजातकअपने जीवन मेंसफलता के शिखरपरपहुँचतेहैं, परन्तुगति धीमीरहतीहै।लगभगआधा जीवन व्यतीतहोजाने के बादही इस योग के प्रभावदिखाईदेतेहैं।
(11) महाभाग्य योग :-
यदिकिसीपुरूष जातक का जन्मदिन के समय हुआहोऔरउसकीजन्मकुंडलीमेंलग्नेश, सूर्यतथाचन्द्रमातीनोंहीविषमराशियोंमेंस्थितहोंतो उस पुरूष जातक की कुंडलीमेंमहाभाग्य योग का निर्माणहोताहै।इसीप्रकार, यदिकिसी स्त्री जातक का जन्मरात के समय हुआहोतथाउसकीजन्मकुंडलीमेंलग्नेश, सूर्यतथाचन्द्रमातीनोंही सम राशियोंमेंस्थितहोंतो उस स्त्री जातक की कुंडलीमेंमहाभाग्य योग का निर्माणहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातककोआर्थिकसमृद्धि, उच्च पद, प्रभुत्व, ऐश्वर्यऔरप्रसिद्धि प्राप्तहोतीहै।
(12) अनफा योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंचन्द्रमा से पिछले घरमेंसूर्यकोछोड़करकोईअन्य ग्रहस्थितहोतोअनफा योग का निर्माणहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातककोस्वास्थ्य, प्रसिद्धि तथाआध्यात्मिकविकासप्राप्तहोताहै।
(13) सुनफा योग :-
यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंचन्द्रमा से अगले घरमेंसूर्यकोछोड़करकोईअन्य ग्रहस्थितहोतोसुनफा योग का
निर्माणहोताहै।इस योग के शुभप्रभाव से जातकको धन, संपत्तितथाप्रसिद्धि प्राप्तहोतीहै।
(4)
(14) दुर्धरा योग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंचन्द्रमा से पिछले घरमेंतथाचन्द्रमा से अगले घरमेंसूर्यकोछोड़करकोईअन्य ग्रहस्थितहोतो दुर्धरा योग का निर्माणहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातकको शारीरिकसौंदर्य, स्वास्थ्य, संपत्तितथासमृद्धि प्राप्तहोतीहै।
(15) वाशि योग :-
यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंसूर्य से पिछले घरमेंचन्द्रमाकोछोड़करकोईअन्य ग्रहस्थितहोतोवाशि योग का निर्माणहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातककोआर्थिकसमृद्धि, सरकारमेंउच्च पद, प्रभुत्व, ऐश्वर्य, साहसऔरप्रसिद्धि प्राप्तहोतीहै।
(16) वेशि योग :-
यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंसूर्य से अगले घरमेंचन्द्रमाकोछोड़करकोईअन्य ग्रहस्थितहोतोवेशि योग का निर्माणहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातकको धन, संपत्तितथाप्रसिद्धि प्राप्तहोतीहै।
(17) उभयचरी योग :-
यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंसूर्य से पिछले घरमेंतथासूर्य से अगले घरमेंचन्द्रमाकोछोड़करकोईअन्य ग्रहस्थितहोतोउभयचरी योग का निर्माणहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातकको शारीरिक बल औरसौंदर्य, स्वास्थ्य, संपत्तितथासमृद्धि प्राप्तहोतीहै।
(18) अमला योग :-
यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंलग्न या चन्द्रमा से दसवेंभावमेंकोईबलवान शुभग्रहहोतोअमलाअथवाकीर्तियान का निर्माणहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातकराज्य, प्रजाऔरबुंधओ का प्रिय, दानी, परोपकारी, धर्मात्माऔर गुणी होतीहै।
(19) चन्द्राधियोग :-
यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंचन्द्रमा से छठें, सातवेंऔरआठवेंभावोंमें शुभग्रहहोतोचन्द्राधियोगबनताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातकभावांमेंस्थितग्रहों के बलानुसारदीर्घायु, स्वस्थ, राजाका मंत्री, सेना का अध्यक्ष आदिहोताहै।
(20) लग्नाधियोग :-
यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंलग्न से छठें, सातवेंऔरआठवेंभावोंमें शुभग्रहहोऔरवेअशुभग्रहों से युक्त या दृष्टनहींहोतोलग्नाधियोगबनताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातक धनवान, उदार, सौभाग्यशाली, सेनामेंउच्चपदस्थअथवावैज्ञानिकहोताहै।
(21) पर्वत योग :-
(क) यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंसभी शुभग्रहकिसीभीविन्यासमेंकेन्द्रमेंस्थितहोतथाछठेंऔरआठवेंभावमें या शुभग्रहहोंअथवाकोईभीग्रहस्थित न होंतोपर्वतयोग का निर्माणहोताहै।
(ख) यदिलग्नेशतथा द्वादशेशकेन्द्रमेंस्थितहोंतथामित्र ग्रहों से दृष्टहोंतोपर्वतयोग का निर्माणहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातक यशस्वी, वाक्-कुशल, भगवतवेताऔरविद्वानहोताहै।
(5)
(22) चामरयोग :-
यदिलग्नेशऊच्चगतहोकरकेन्द्रमेंस्थितहोतथागुरू से दृष्टहोअथवादो शुभग्रहलग्न, सप्तम या दशमभावमेंहोतोजातक के जन्मकुंडलीमेंचामरयोगनिर्मितहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातकराज-पूजितऔरविद्वानहोताहै।
(23) मालिकायोग :-
यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंलग्न से प्रारम्भकरलगातरसातभावोंमेंसूर्य से शनितक ये सातोंग्रहस्थितहोंतोमालिका योग का निर्माणहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातक धनवानऔरअनेकवाहनों का स्वामीहोताहै।
(24) अधियोग :-
यदिजातक की जन्मकुंडलीमेंचन्द्रमा से 6ठें, 7वें अथवा 8वें घरमेंगुरू, शुक्र या बुध स्थितहोतोअधियोग का निर्माणहोताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातककोप्रभुत्व, प्रतिष्ठाआदिप्राप्तहोताहै।
(25) विपरीतराजयोग :-
यदिछठें, आठवेंऔरबारहवेंभाव के स्वामीछठें, आठवें या बारहवेंभावमेंहीस्थितहोंजायेंतोविपरीतराजयोग का निर्माणहोताहै।
ऐसीस्थितिमेंग्रहजहाँ स्थितहोतेहै, वहाँ के अशुभप्रभावकोनष्टकर शुभफलप्रदानकरतेहै।
(26) सिद्धियोग :-
यदिसोमवारऔर शुक्रवारकोनन्दातिथि 1,6व 11, मंगलवारऔररविवारको 3,8व 13, बुधवारकोभद्रातिथि 2, 7 व 12, गुंरूवारकोपूर्णातिथि 5, 10,15व 30 और शनिवारकोरिक्तातिथि 4, 9 व 14 होतोसिद्धियोग का निर्माणहोताहै।सिद्धियोगप्रत्येककार्य के लिये शुभमानाजाताहैऔर इस योगमेंकार्यसफलहोतेहै।
(27) सर्वार्थसिद्धियोग :-
विभिन्नवार एवं नक्षत्रों के संयोग से सर्वार्थसिद्धियोग का निर्माणहोताहै। नाम के अनुरूपही इस योगमेंहोनेवालाकार्यसफलहोताहै।
(28) अमृतयोग :-
यदिसोमवारऔररविवारकोपूर्णातिथि 5, 10, 15 व 30, मंगलवारकोभद्रातिथि 2, 7व 12, बुधवारऔर शनिवारकोनन्दातिथि 1, 6, व 11, गुरूवारको 3, 8व 13, शुक्रवारकोरिक्तातिथि 4, 9व 14 होतोअमृतयोग का निर्माणहोताहै।अमृतयोगप्रत्येककार्य के लिये शुभमानाजाताहै।
(29) अमृतसिद्धियोग :-
यदिसोमवारकोमृगशिरा, मंगलवारकोअश्विनी, बुधवारकोअनुराधा, गुरूवारकोपुष्य, शनिवारको रोहिणी औररविवारकोहस्त नक्षत्र होतोअमृतसिद्धियोग का निर्माणहोताहै।
(6)
(30) रवि योग :-
यदिसूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र 4, 6, 9, 13व 20 होतोरवियोगहोताहै। यह शुभ योगमानाजाताहै।
(31) रविपुष्प योग :-
यदिरविवार के दिनपुष्प नक्षत्र होतोरविपुष्य योग का निर्माणहोताहै।विवाहकोछोड़कर यह योगसभीकर्यों के लिये शुभमानागयाहै। यंत्र, मंत्र, तंत्र, रत्न-धारण, जड़ी-बूटीग्रहणकरना इस योगमेंविशेषलाभकारीहोताहै।
(32) गुरूपुष्य योग :-
यदिगुरूवार के दिनपुष्य नक्षत्र होतोगुरूपुष्य योग का निर्माणहोताहै।यह योगगृहप्रवेश, ग्रह-शांति, शिक्षा औरव्यापारसम्बन्धीआदिकार्यों के लिए अत्यंतश्रेष्ठ एवं शुभमानाजाताहै।
(33) राज्यप्रद योग :-
यदिमंगलवारऔर शनिवारकोरिक्तातिथिअर्थात् 4, 9व 14 होतोराज्यप्रद योगबनताहै। यह योगराजसुख प्राप्ति के लियेउत्तममानाजाताहै।
(34) प्रशस्त योग :-
वार एवं नक्षत्र के निम्नवत् संयोग से प्रशस्त योग का निर्माणहोताहै। यह योगप्रत्येककार्य के लिये शुभमानाजाताहै।
(35) पुष्कर योग :-
यदिजातक के जन्मकुंडलीमेंचन्द्रमालग्नेशअर्थात् पहले घर के स्वामीग्रह के साथहोतथा ये दोनोंजिसराशिमेंस्थितहों, उस राशि का स्वामीग्रहकेन्द्रमेंस्थितहोकरअथवाकिसीराशिविशेषमेंस्थितहोने से बलवानहोकरलग्नको देख रहाहो एवंलग्नमेंकोई शुभग्रहउपस्थितहोतोपुष्कर येगबनताहै। इस योग के शुभप्रभाव से जातककोआर्थिकसमृद्धि, व्यवसायिकसफलता एवंसरकारमेंप्रतिष्ठातथाप्रभुत्व का पद प्राप्तहोताहै।
पुनश्च, जबसूर्यविशाखा नक्षत्र मेंहोऔरचन्द्रमाकृतिका नक्षत्र मेंहो, तबपुष्कर योगबनताहै।पुष्कर योगप्रत्येककार्य के लिये शुभ एवंउत्तममानागयाहै।
(36) द्विपुष्कर योग :-
जिननक्षत्रों के दोचरण एक हीराशिमेंहो, वे द्विपुष्कर नक्षत्र कहेजातेहै।मृगशिरा, चित्रा एवं धनिष्ठा, द्विपुष्कार नक्षत्र है।
रविवार, मंगलवारऔर शनिवारकोद्वितीया, सप्तमी, द्वादशीतिथि एवंमृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्र के मिलन से द्विपुष्कर योग का निर्माणहोताहै। द्विपुष्कर योग का निर्माणहोताहै। द्विपुष्कार योगमृत्यु,विनाशऔरवृद्धि के फलको द्विगुणित करदेताहै।
(7)
(37) त्रिपुष्कर योग :-
जिननक्षत्रों के तीनचरण एक हीराशिमेंहो, वे त्रिपुष्कर नक्षत्र कहेजातेहै।कृतिका, पुनर्वस, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, उत्तराषाढ़ा औरपूर्वाभाद्रपद त्रिपुष्कर नक्षत्र है।रविवार, मंगलवारऔर शनिवारको द्वितीया, सप्तमी, द्वादशीतिथि
एवंकृतिका, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, उत्तराषाढ़ा औरपूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के मिलन से त्रिपुष्कर योग का निर्माणहोताहै।
त्रिपुष्कर योगमृत्यु, विनाशऔरवृद्धि के फलको त्रिगुणित करदेताहै।
(38) अभिजितमुहुर्त :-
प्रत्येकदिन मध्य दिवस से आधी घटी (12 मिनट) पूर्व से आधी घटीपश्चात् तकअभिजीतमुहूर्तहोताहै।नारदपुराण के अनुसार एक घटी (24मिनट) पूर्व से एक घटीपश्चात् तकअभिजीतमुहूर्तहोताहै।अभिजीतमुहूर्तमेंकियेगयेसभीकार्यसफलहोतेहै।अभिजितमुहूर्त के लियेकिसीअन्य शुद्धाशुद्धि का विचारनहींकियाजाताहै।
एवंप्रकारेणउपर्युक्त योगों एवंमुहूर्तों के विवेचन से स्पष्टहैकि शुभ योगव्यक्तिकोसुयोग्य, सफल, महानऔरमहापुरूष बनादेतेहैंतथा शुभमुहूर्तविभिन्नकार्योंमेंअभीष्टसिद्धि औरसफलताप्रदानकरतेहै।
द्वाराआचार्यअशोककुमारमिश्र
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