नवग्रहों की अवस्था का बर्गीकरण निम्नानुसार हैं :-
// १ . अंशो के आधार पर ग्रहों की अवस्था //
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वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की अवस्था पांच मानी जाती हैं:- बाल अवस्था, कुमार अवस्था, युवा अवस्था , बृद्ध अवस्था, मृत्यु अवस्था !! प्रत्येक राशि के 30अंश होते है। ग्रहो की बालादि अवस्थाओ का परीक्षण करने के लिए 30-अंशो को 6 बराबर-बराबर 5 भागो में बाटा जाता है। ग्रहो के सम और विषम राशियों में अंशाबल की स्थिति निम्न प्रकार से परिभाषित किया है।
(A) यदि ग्रह विषम राशि में स्थित होता है तब यह :-
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विषम राशि – 1, 3, 5, 7, 9 और 11 अर्थात मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुंभ विषम राशि है । जो विषम राशि है उसी को पूरूष राशि भी कहते हैं और क्रूर राशि भी कहते हैं ।
- 00-06 अंश तक बाल अवस्था: २५ % तक परिणाम देता है।
- 06-12 अंश तक कुमार अवस्था: ५० % तक परिणाम देता है।
- 12-18 अंश तक युवा अवस्था: १०० % परिणाम देता है ।
- 18-24 अंश तक वृद्ध अवस्था: इस अवस्था में ग्रहों के परिणाम नगण्य माने जाते हैं।
- 24-30 अंश तक मृतावस्था: इस अवस्था में ग्रह कोई परिणाम नहीं दे पाते हैं।
(B) यदि ग्रह सम राशि में स्थित होता है तब यह :-
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सम राशि – 2, 4, 6, 8, 10 और 12 अर्थात बृष, कर्क, कन्या, बृश्चिक, मकर और मीन सम राशि है । जो सम राशि है उसी को स्त्री राशि और सौमय राशि भी कहते हैं ।
- 00-06 अंश तक मृतावस्था: इस अवस्था में ग्रह कोई परिणाम नहीं दे पाते हैं।
- 06-12 अंश तक वृद्ध अवस्था: इस अवस्था में ग्रहों के परिणाम नगण्य माने जाते हैं।
- 12-18 अंश तक युवा अवस्था: १०० % परिणाम देता है ।
- 18-24 अंश तक कुमार अवस्था: ५० % तक परिणाम देता है।
- 24-30 अंश तक बाल अवस्था: २५ % तक परिणाम देता है।
ग्रहों के उपरोक्त दिए हुए ग्रहों कीअवस्था से ये साफ़ है –
- अच्छा ग्रह उच्च राशि में है पर बृद्ध या मृत्यु अवस्था में है तो अच्छा फल नहीं मिलेगा।
- बुरा ग्रह भी नीच राशि में है पर बृद्ध या मृत्यु अवस्था में तब भी बुरे प्रभाव काम देगा।
- कुंडली में हर ग्रह के आगे अंश लिखा हुआ होता है। जो उस ग्रह का सामर्थ्य को दिखाता है। इस दुनिया में कोई भी चीज़ अपने सामर्थ्य के अनुसार ही फल देती है। ग्रह भी अपने सामर्थ्य के अनुसार फल देते हैं। ग्रहों का सामर्थ्य, कुंडली में वे किस राशि में कितने अंश पर हैं, निर्भर करता है।
- बाल अवस्था में ग्रह की स्थिति | जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि बाल अवस्था में स्थित है तब वह ग्रह छोटे बालक के समान निर्बल होता है । अपना फल देने में ग्रह पूर्ण रुप से सक्षम नही होता है । बाल अवस्था में स्थित ग्रह जिस भाव तथा जिस राशि मे बैठा होता है उसी के अनुसार कार्य करता है ।
- कुमार अवस्था में स्थित ग्रह | जन्म कुण्डली में ग्रह यदि कुमार अवस्था में किसी भी भाव या किसी भी राशि में स्थित है तब यह स्थिति बाल अवस्था से कुछ बेहतर मानी जाती है. इस अवस्था में ग्रह के भीतर कुछ फल देने की क्षमता होती है । इस अवस्था में ग्रह अपना एक तिहाई फल प्रदान करता है।
- युवा अवस्था में स्थित ग्रह | ग्रह की युवा अवस्था अत्यधिक शुभ तथा बली मानी गई है। इस अवस्था में ग्रह अपने सम्पू्र्ण फल प्रदान करता है । इसमें ग्रह एक युवा के समान बली होता है तथा दशा अनुकूल होने और कुण्डली विशेष के लिए वह ग्रह अनुकूल होने पर जातक को सारे सुख प्रदान करता है । उदाहरण के लिए कुण्डली में अगर दशमेश की दशा हो और ग्रह युवा अवस्था में स्थित हो तो जातक इस दशा मे उन्नति करता है ।
- वृ्द्ध अवस्था में स्थित ग्रह | इस अवस्था में स्थित ग्रह एक वृद्ध के समान निर्बल होता है । ग्रह फल देने मे सक्षम नही होता और यदि उसी ग्रह की दशा भी चल रही हो तब वह व्यक्ति के लिए शुभफलदायी नहीं रहेगी । माना किसी व्यक्ति की कुण्डली में उच्च राशि में ग्रह स्थित है लेकिन वह वृद्धा अवस्था में है तो जातक उस ग्रह की दशा में अधिक उन्नति नहीं कर पाएगा ।
- मृत अवस्था में स्थित ग्रह | मृत अवस्था में स्थित ग्रह अपने पूरे फल नहीं दे पाता क्योंकि ग्रह मृत व्यक्ति के समान मूक होता है । ग्रह अपनी दशा में अपने स्वरुप फल नही देता, वह जिस भाव में तथा जिस राशि में होता है उसी के अनुसार फल प्रदान करता है । यदि लग्नेश कुंडली मे बली होकर भी मृत अवस्था में स्थित हो तो वह जातक को शारीरिक सुख में कमी प्रदान कर सकता है ।
// २ . चैतन्यता के आधार पर ग्रहों की अवस्था //
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क ) विषम राशि में ग्रह : –
००-१० अंश जागृत अवस्था
१०-२० अंश स्वप्न अवस्था
२०-३० अंश सुषुप्त अवस्था
ख ) सम राशि में ग्रह : –
००-१० अंश सुषुप्त अवस्था
१०-२० अंश स्वप्न अवस्था
२०-३० अंश जागृत अवस्था
– ग्रहों की जागृत अवस्था कार्यसिद्धि करती है, स्वप्न अवस्था मध्यम फल देती है तथा सुषुप्त अवस्था निष्फल होता है ।
// ३ . दीप्ती के अनुसार ग्रहों की अवस्था //
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- i) दीप्त अवस्था – उच्च राशिस्थ ग्रह दीप्त कहलाता है, जिसका फल कार्यसिध्दि है ।
- ii) स्वस्थ अवस्था – स्वगृही ग्रह स्वस्थ कहलाता है, जिसका फल लक्ष्मी व कीर्ति प्राप्ति है।
iii) मुदित अवस्था – मित्रक्षेत्री ग्रह मुदित कहलाता है, जो आनंद देता है ।
- iv) दीनअवस्था – निच्च राशिस्थ ग्रह दीन कहलाता है, जो कष्टदायक होता है ।
- v) सुप्त अवस्था – शत्रुक्षेत्री ग्रह सुप्त कहलाता है, जिसका फल शत्रु से भय होता है ।
// ४ . सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों की अवस्था //
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(I) अस्त अवस्था :- जब कोई भी ग्रह सूर्य के निकट १२ से १ ६ अंश (आगे या पीछे)) तक आ जाता है, तो सूर्य की ऊष्मा और प्रकाश के आगे उसकी स्वयं की चमक फीकी पड़ जाती है और वह आकाश में दृष्टिगोचर नहीं होता, तो ग्रह की इस अवस्था को अस्त अवस्था कहते हैं , इस अवस्था में ग्रह अपना फल देने में असमर्थ हो जाते हैं।
जैसे – सूर्य एक राशि में १० अंश पर है और बुद्ध भी उसी राशि में १८ अंश पर है अगर दोनों के अंशों कर अंतर निकला जाय तो ये ८ अंश आता है इसका अभिप्राय ये है की बुद्ध एक अस्त ग्रह है अतः बुद्ध के परिणाम इस कुंडली में नहीं मिलेंगे।
कौन सा ग्रह सूर्य से कितने अंश समीप आने पर अस्त माना जायेगा :-
- i) मंगल सूर्य से १७ अंश या इसके निकट पर अस्त होता है।
- ii) बुद्ध १४ अंश समीप आने पर अस्त होता है।
iii) बृहस्पति सूर्य से ११ अंश पर अस्त माना जाता है।
- iv) चन्द्रमा १२ अंश पर अस्त माना जाता है।
- v) शुक्र सूर्य से १० अंश पर अस्त माना जाता है।
- vi) राहु और केतु छाया ग्रह हैं, ये कभी अस्त नहीं होते।
(II) उदयी अवस्था :- सूर्य से उपरोक्त अंशो अधिक दूर हो जाने पर ग्रह उदय हो जाते हैं ।
// ५ . गति के अनुसार ग्रहों की अवस्था //
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क) सूर्य तथा चन्द्रमा सदैब मार्गी रहते हैं ।
ख) राहु और केतु सदैब वक्री रहते हैं ।
ग) शेष ग्रह मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि सामान्यतः मार्गी होते हैं पर बिच-बिच में वक्री भी हो जाते हैं ।
घ) इन ग्रहों की गति मार्गी से वक्री तथा वक्री से मार्गी होते समय अति मंदा हो जाते हैं ।
ड) यह ग्रह वक्री होने के कुछ दिन पहले व कुछ दिन बाद तक स्थिर दिखाई पड़ते हैं ।
इनकी वक्री व स्थिर होने की अबधि निम्नानुसार हैं –
ग्रह वक्र – काल स्थिर – काल
मंगल ८० दिन ३ दिन पूर्व ३ दिन पश्चात तक
बुध २४ दिन १ दिन पूर्व १ दिन पश्चात तक
गुरु १२० दिन ५ दिन पूर्व ५ दिन पश्चात तक
शुक्र ४२ दिन २ दिन पूर्व २ दिन पश्चात तक
शनि १४० दिन ५ दिन पूर्व ५ दिन पश्चात तक
// ६ . सूर्य से भाबों के दुरी के अनुसार ग्रहों की अवस्था //
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- i) सूर्य से दूसरे स्थान पर ग्रहों की गति तीब्र हो जाते हैं ।
- ii) सूर्य से तीसरे स्थान पर सम तथा चौथे स्थान पर गति मंद हो जाता है ।
iii) सूर्य से पांचवे व छठे स्थान पर ग्रहों की गति वक्री हो जाते हैं ।
- iv) सूर्य से सातवें व आठवें स्थान पर ग्रहों की गति अति वक्री हो जाते हैं ।
- v) सूर्य से नवें व दसवें स्थान पर ग्रहों की गति मार्गी हो जाते हैं ।
- vi) सूर्य से ग्यारहवें व बारहवें स्थान पर ग्रहों की गति पुनः तीब्र हो जाते हैं ।
ज्योतिषाचार्य डॉ. शुभेन्दु कुमार दास
[ ग्रहानुकूल रत्न बिशेषज्ञ ]
[ परामर्शदाता : महावास्तु
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