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बहुत जन्मों के बाद तत्त्वज्ञान को प्राप्त हुआ ज्ञानी पुरुष ‘सब कुछ वासुदेव ही है’ – इस प्रकार मुझको भजता है। वह महात्मा अति दुर्लभ है।’
 अध्यात्म क्या है? आधिदेव क्या है? 
आधिभूत क्या है? आधियज्ञ किसको बोलते हैं?
क्षर क्या है, अक्षर क्या है?
अध्यात्म किसे कहते हैं, अधिभूत किसे कहते हैं, अधियज्ञ किसे कहते हैं – ये शब्दों में तो बोल सकते हैं, परन्तु नि:शब्द को छूकर जो गुरुदेव की वाणी आती है, वो हम लोगों को भी नि:शब्द में विश्रांति दिलायेगी…
 
इसीलिए भगवान शिवजी ने गुरु गीता में बड़े प्यारे वचन कहे हैं:
गुकारश्च गुणातीतो रूपातीतो रुकारकः |
गुणरूपविहीनत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ||
गुणातीत और रूपातीत स्थिति जो देते हैं, बहुत ऊँची बात है, (वे सद्गुरु हैं)….
जन्म-मरण क्यों होता है?
सत और असत, अच्छी और बुरी योनियों में जन्म, गुणों के संग के कारण होता है…
किन्तु गुरु का ये प्रभाव होता है, और ये स्वभाव होता है, कि वो अपनी शरण में आने वाले को गुणातीत और रूपातीत स्थिति देने का सामर्थ्य रखते हैं…
वो सामर्थ्य आत्मज्ञानी गुरु के पास ही होता है….
अधिभूत – ये जो पंचभूत से बनी हुई सृष्टि है, यह अधिभूत है…
अधिदैव – जिसकी शक्ति से दिखता है….
और अध्यात्म – जो ईश्वर की परा प्रकृति, जीवात्मा, ईश्वर का अंश…उसको अध्यात्म…
भगवान ने गीता के तेरहवें अध्याय में जो गुरुदेव ने अभी कहा: क्षर किसे कहते हैं, अक्षर किसे कहते हैं….
वो गीता जी का तेरहवां अध्याय “क्षर-अक्षर विभाग योग”…
यह पंचभौतिक शरीर ‘क्षर’ है, और शरीरी जो है वो ‘अक्षर’…
और भगवान कहते हैं: इस शरीर के अन्दर जो शरीरी है…
शरीर को ‘क्षेत्र’ और शरीरी को ‘क्षेत्रज्ञ’ कहा…
भगवान ने कहा उसके साथ मेरी एकता है…तो उसको कहेंगे अधियज्ञ, 
और उसकी एकता का अनुभव गुरु की उपासना से, गुरु की भक्ति से ही होता है…
इसीलिए शिवजी ने वो कल्याणकारी वचन कहा…
भगवान कृष्ण ने भी उद्धव जी से कहा: भक्ति ऐसी होनी चाहिए जिसका कभी व्यय न हो…
तो हमें सत्संग भी मिलता रहे और हमारी भक्ति भी उत्तरोत्तर बढती रहे…(ऐसी प्रार्थना हम गुरु चरणों में करते हैं)
परिस्थितिजन्य सुख से अतीत स्वरूपगत आनंद की अनुभूति कराने का सामर्थ्य, वो गुरु का सानिध्य रखता है…
इसलिए शास्त्र से इतना काम नहीं होता, जितना शास्ता की मौजूदगी से होता है….
पूज्य गुरुदेव: अच्छा, आपने बताया कि हमारी भक्ति बढ़ती रहे, भजन बढ़ता रहे, साधना बढ़ती रहे…
तो भक्ति का स्वरूप क्या है?भक्ति किसे कहते हैं?
गुरुदेव के सत्संग में हमने सुना है कि “भागो हि भक्ति”, “भंजनं भक्ति”, “रसनं भक्ति”….
जो भाग कर दे, कि ये सार है, ये असार है…असार से मन हटे और सार की तरफ की यात्रा शुरू हो जाये…”भागो हि भक्ति”…
भंजनं भक्ति – जैसे मौत शरीर को मार देती है, उसी प्रकार दोषों को, दुर्गुणों को, विकारों को मारने का सामर्थ्य, भंजनं भक्ति….
 
आचार्य पंडित राजकुमार त्रिवेदी
ज्योतिष एवं अध्यात्म

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